करती ख़ुद पर नाज़, सनम मैं तुमको पाकर। करती ख़ुद पर नाज़, सनम मैं तुमको पाकर।
यादों की कश्ती के, थे हम मझधार उसे, कहते-कहते, अब मैं गयी हार यादों की कश्ती के, थे हम मझधार उसे, कहते-कहते, अब मैं गयी हार
क्यूँकि हर एक शख्स का कोई ठिकाना होता है। क्यूँकि हर एक शख्स का कोई ठिकाना होता है।
क्यों हुआ है इस कदर परेशां, ढूंढता फिरता है यहाँ किसके निशाँ क्यों हुआ है इस कदर परेशां, ढूंढता फिरता है यहाँ किसके निशाँ
इतना भी ना स्वाद ले सारे मसाले भर मुठ्ठी में हम पर ही उड़ेल दे। आंखो में मिर्च की ज इतना भी ना स्वाद ले सारे मसाले भर मुठ्ठी में हम पर ही उड़ेल दे। आंखो मे...
तुमने तो कुछ कहे बिना चुन लिया हमसफ़र अपना, और मैं वफ़ा की इस राह में बस अकेली ही चल र तुमने तो कुछ कहे बिना चुन लिया हमसफ़र अपना, और मैं वफ़ा की इस राह में बस अकेल...